व्रज भाषा का अर्थ
[ verj bhaasaa ]
व्रज भाषा उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञाउदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- अपने पटु शिष्य सूरदाससे व्रज भाषा में श्रीकृष्ण महिमा का गान करा उनकी भक्ति को आमजनमें भी प्रतिष्ठित कर दिया।
- वास्तव में इस परंपरा के आचार्यों ने व्रज भाषा में लिखा और आधुनिक समय में इस भाषा के अल्प प्रसार के कारण , बहुत कम शोध किया गया है, हालांकि ये आचार्य, वृन्दावन के छह गोस्वामियों से कई सड़ी पहले हुए थे.
- वास्तव में इस परंपरा के आचार्यों ने व्रज भाषा में लिखा और आधुनिक समय में इस भाषा के अल्प प्रसार के कारण , बहुत कम शोध किया गया है, हालांकि ये आचार्य, वृन्दावन के छह गोस्वामियों से कई सड़ी पहले हुए थे.
- वास्तव में इस परंपरा के आचार्यों ने व्रज भाषा में लिखा और आधुनिक समय में इस भाषा के अल्प प्रसार के कारण , बहुत कम शोध किया गया है , हालांकि ये आचार्य , वृन्दावन के छह गोस्वामियों से कई सड़ी पहले हुए थे .
- ' कंगना' राग:- मालकौंस, ताल:- झपताल, गायक:- फरीद अयाज़ और अबू मोहम्मद, भाषा:- व्रज भाषा, फ़ारसी, हिन्दवी, कवि:- मिर्ज़ा कतील (इन्तेकाल १८१७), बेदम शाह वारसी (इन्तेकाल १९३६) और कुछ बेनाम कवि (व्रज और हिन्दवी) ए कंगना, दे दे री छैल मेरो, कंगना दे दे तोरी बिनती करूँ, तोरे पैयाँ परूँ ए कंगना (निज़ामी गंजवी की फ़ारसी ग़ज़ल से)
- जयदेव के मुंह-बोले बड़े भाई , स्वामी श्री श्रीभट्ट ने जयदेव की तरह संगीतमय प्रस्तुति की ध्रुपद शैली के लिए युगल शतक की रचना की, लेकिन जयदेव के विपरीत, जिन्होंने अपनी रचना संस्कृत में लिखी थी, स्वामी श्रीभट्ट की रचनाएं व्रज भाषा में हैं, जो हिन्दी का एक स्थानीय रूप है जिसे व्रज के सभी निवासियों द्वारा समझा जाता था.
- जयदेव के मुंह-बोले बड़े भाई , स्वामी श्री श्रीभट्ट ने जयदेव की तरह संगीतमय प्रस्तुति की ध्रुपद शैली के लिए युगल शतक की रचना की, लेकिन जयदेव के विपरीत, जिन्होंने अपनी रचना संस्कृत में लिखी थी, स्वामी श्रीभट्ट की रचनाएं व्रज भाषा में हैं, जो हिन्दी का एक स्थानीय रूप है जिसे व्रज के सभी निवासियों द्वारा समझा जाता था.
- इसी परंपरा का एक प्राचीन प्रतीक है हमारा लोक संगीत , रसिया गायन | रसिया मुख्य रूप से व्रजभाषा में गाया जाता है | व्रज भाषा हिंदी के जन्म से पहले , पांच सौ वर्षों तक उत्तर भारत की प्रमुख भाषा रही है | रसिया गायन में राधा और कृष्ण को नायक - नायिका के रूप में चित्रित करते हुए , मानवीय संबंधों , मानवीय प्रेम , और ईश्वरीय भक्ति - प्रेम का गायन है |
- 13 वीं और 14 वीं सदी में निम्बार्क सम्प्रदाय के बाद के आचार्यों ने इस दैवीय जोड़ी पर अधिक साहित्यिक रचनाएं की . जयदेव के मुंह-बोले बड़े भाई , स्वामी श्री श्रीभट्ट ने जयदेव की तरह संगीतमय प्रस्तुति की ध्रुपद शैली के लिए युगल शतक की रचना की , लेकिन जयदेव के विपरीत , जिन्होंने अपनी रचना संस्कृत में लिखी थी , स्वामी श्रीभट्ट की रचनाएं व्रज भाषा में हैं , जो हिन्दी का एक स्थानीय रूप है जिसे व्रज के सभी निवासियों द्वारा समझा जाता था .